भांग की खेती से होगा अब देवभूमि का उद्धार !

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पलायन की मार से बेहाल हिमालयी राज्य उत्तराखंड की आंचलिक बोली में कभी शापित करने या गाली के पर्याय के तौर पर इस्तेमाल होने वाला भांग अब बंजर खेतों और संकट में पड़ी खेती का उद्धार करेगा। फाइबर, कॉस्मेटिक और औषधि के रूप में औद्योगिक भांग (हैंप) की बहुत ज्यादा मांग है। औषधि में हैंप के उपयोग के लिए पूरे देश में केवल उत्तराखंड सरकार ने ही प्रस्ताव दिया है। खास बात ये है कि प्रदेश को हैंप की खेती के लिए लाइसेंस देने पर केंद्र सरकार विचार कर रही है। 
भांग का जिक्र होते ही जेहन में सबसे पहले नशे के लिए इस्तेमाल होने वाले गांजे का नाम कौंधता है। हालांकि औद्योगिक भांग और सामान्य भांग में बड़ा अंतर है। भांग में नशे के लिए इस्तेमाल होने वाले टेट्रा हाइड्रो कनोबिनॉल (टीएचसी) रसायन की मात्रा 30 फीसद तक होती है। वहीं औद्योगिक भांग में टीएचसी की मात्रा सिर्फ 0.3 फीसद तक है। औद्योगिक प्रयोजन के लिए इसी भांग की खेती की जाती है। नशे से जुड़े भांग की दूसरी बुराई, उसका खेतों में फैलना रहा है। 
खेती और जीवन पर इसके बुरे असर को देखते हुए ही पर्वतीय आंचलिक बोली में भांग को गाली के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अब वक्त बदला। पलायन से खाली हो रहे गांवों और खेतों को दोबारा जीवन देने को अब भांग की खेती को देवभूमि में नई संभावना के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार इससे पहले संशोधित भूमि अधिनियम में भांग की खेती के लिए लीज पर भूमि देने की संभावना को खुद ही खत्म कर चुकी है। 

केंद्रीय सीड एक्ट में बदलाव की पैरवी करते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने बताया कि भांग की खेती को उद्यान विभाग नोडल और आबकारी रेगुलेटरी विभाग होगा। उद्योग विभाग भांग उत्पाद के विस्तार की कार्ययोजना तैयार करेगा। उद्योग विभाग ने बताया कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को भांग की खेती का लाइसेंस देने पर विचार कर रही है। मुख्य सचिव ने केंद्र सरकार के सीड एक्ट में हैंप सीड को जोड़ने के लिए कृषि और उद्यान विभाग को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।

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