यूनान, चीन, मिस्र आदि प्राचीन सभ्यताओं में तथा यहूदी, ताओ, बौद्ध, सिख व इस्लाम जैसे धर्मों में गांजा या भांग नामक वनस्पति को बहुत महत्व दिया गया है और इसका प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता रहा है| तथापि गांजा के सबसे पुरातन उल्लेख भारत में मिलते हैं| सनातन धर्म में गांजा को भगवान शिव का प्रसाद बताया गया है तथा भारत की प्राचीन आयुर्वेद पद्धति में इसे अमृततुल्य माना गया है| अथर्व वेद में इसे पृथ्वी की ५ सबसे पवित्र वनस्पतियों में से एक बताया गया है तथा इसे १५० से अधिक नाम दिए गए हैं जैसे इन्द्रासन, विजया, अजय इत्यादि| सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है, जिनमें इसके औषधीय गुणों का विश्लेषण किया गया है| कई आयुर्वेदिक औषधियों में गांजा या भांग का मौलिक रसायन के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है| क्या कारण थे की ऐसी चमत्कारिक व उपयोगी वनस्पति पर, जिसे हमारे पूर्वज अपने सबसे प्रिय भगवान को चढ़ावे के रूप में अर्पण किया करते थे, उसी की मूल धरती, भारत में प्रतिबन्ध लगा दिए गए? कब और किसने लगाये ये प्रतिबन्ध? क्यों ७० वर्षों तक इस प्रतिबन्ध का विरोध करने के बाद भी भारत में गांजा को अवैध घोषित कर दिया गया? जानिए सुश्री प्रिया मिश्र के इस सृजन व्याख्यान में| आज जब विश्व के असंख्य देश गांजा की चिकित्सा-प्रधान, औद्योगिक तथा पर्यावरण-सम्बन्धी उपयोगिता के कारणवश इसे वैध घोषित कर चुके हैं, क्यों भारत में आज भी इसका निषेध है? क्यों भारतीय सभ्य समाज में इसके प्रति भ्रांतियां व मिथ्या धारणाएं फैली हुई हैं और इसका उपयोग अनुचित माना जाता है?